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इच्छायें
इच्छाओं को पूरी करें तो जैसे पावक में घी जितनी करें इच्छायें पूरी उतनी ही बढ़ती जायें इच्छायें रोके न रूकें दबाने से शक्ति ही पायें फूटें वे तो समय देख कर जैसे ज्वालामुखी
मैं शुद्ध पहचानता अवश्य इच्छाओं को पर हूं इनसे भिन्न ही अतीन्द्रिय आनंद रूप खुद से ही, खुद में ही, सदैव हूं तृप्त रूप क्या इच्छायें ? कैसी इच्छायें ? ये मेरे से तो
दूर
इसी तरह मैं हूं विजयी सदैव सुख शांत रूप शुभाशुभ भावों को जानता उनसे भिन्न शुद्ध स्वरूप मैं हूं चैतन्य शाश्वत, त्रिकाल, निर्विकारी रूप सच्चिदानंद, पुण्य पाप से भी परे, ज्ञान शांत रूप.
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