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स्वीकार
मेरे भूतकाल में जो कुछ भी हुआ, जभी हुआ
जैसा भी हुआ, सभीका स्वीकार है, स्वीकार है मुझे मरे हुए भूत से कुछ सीखना नहीं, भूतकाल तो भूत ही है
वो गया, जैसा था मुझे स्वीकार है
कल के सपनें मुझे देखने नहीं, इस संसार में, मेरे शरीर में
मेरे शरीर के सारे संबंधों में, कल क्या होगा? __ कैसे होगा? मुझे मालूम करना नहीं मैं उसमें कहीं भी कुछ कर सकता ही नहीं
हुं पामर शुंकरी शकुं ओवो नथी विवेक ? प्रभु जो भी होगा, जहां भी होगा, जैसा होगा
मुझे स्वीकार है, स्वीकार है, मुझे स्वीकार है प्रभु इच्छा, कृष्ण लीला, राम लीला, स्वीकार है, स्वीकार है
अब रहता है अभी का समय. इस क्षण इस समय जो कुछ भी हो रहा है, मैं महसूस तो करता हूं
पर उसमें इष्ट-अनिष्ट, अच्छा-बुरा, सुख-दुख नहीं देखता. इन भावों को महसूस भी नहीं करता
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