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बस जो हो रहा है, उसमें प्रश्न करे बिना, जैसा हो रहा है
उसका सबका ज्ञाता-द्रष्टा बन मैं तो मेरे
स्वयं अविनाशी आत्म तत्व में ही हूं उसे ही महसूस कर रहा हूं. उसीमें ही हूं, आत्मा ही हूं
जो भी हो रहा है, स्वीकार है, मैं हूं ज्ञानस्वरूप जो भी हो रहा है, स्वीकार है, मैं हूं चिदानंदी
जो भी हो रहा है, स्वीकार है, में हूं शांतस्वरूप जो भी हो रहा है, स्वीकार है, मैं तो सिर्फ एक ज्ञायक ही हूं
मेरे वीर्य से, शक्तिओं से, गुणों से, मैं मुझको स्वयं को ही टिकाये हुए स्व अनुभव में रहता हूं, रहता रहूंगा, सदैव ही रहूंगा. सृष्टि स्वीकार, दुनिया स्वीकार,
परिस्थितियां स्वीकार, सब स्वीकार
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