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सत्य
गांधीजी की सत्य की परिभाषा और सभी लोगों से ज्यादा गहन थी सच बोलना, सुनना, और सत्य ही देखना. दूसरे की चीज हम लें और हमारी चीज कोई दूसरा ले, उन्हें मंजूर नहीं था. इसीलिये सत्य के बल पर तो उन्होंने पूरी लड़ाई जीती. पूरे हिदुस्तान को स्वतंत्र किया
अंग्रेज हमारे ही घर में हमें गुलाम बनाएं, हमारा आपस में ही झगड़ा करा हमें कमजोर कर डालें, ये उन्हें दिखाई दिया, इसीलिये वो एक लंगोटी पहन उन्हें कह सके कि हम हमारे ही घर में इस तरह गुलाम नहीं बनेंगे हम तुम्हारे बनाये कपड़े, तुम्हारी भाषा,संस्कृति को जानेंगे परन्तु अपनायेंगे नहीं
आत्मा का धर्म,जिनशासन भी हमें सच्चाई से रहने और स्वयं की स्वतंत्रता समझाता है मेरी तो शुद्ध, चिदानंदी, ज्ञानस्वरुपी आत्मा है.बाकी तो सब ही मेरे नहीं दूसरों का पैसा, जायदाद, चीजें हमारी नहीं और उनके बारे में सोचना भी गलत ही है दूसरों की चीजों के भावों में, विचारों में मैं कैसे मग्न हो सकता हूं?
जैसे गांधीजी ने अंग्रेजों को पराया समझा वैसे ही जैन मुनि भी सारे परके भावों को भी पराया समझते हैं एवं मानते भी हैं. वे तो खुद में ही,खुद से ही पूरी स्वतंत्रता से जीते हैं और इसीलिए पूर्ण स्वतंत्र पद, मोक्ष पद, एवं सदा के लिये परम आनंद को पाते हैं
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