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यह ६० साल बिताये हैं किसने?
This poem is to remind us the truth we have forgotten and are trying very hard to remember. Realize our own eternal, blissful true nature.
यह ६० साल बिताये हैं किसने? इस जीव ने या शरीर ने? इन ६० सालों की पुरानी यादों के यह ६० लिफाफे ? क्या एक एक लिफाफा इस शरीर की और इस शरीर के ही सम्बन्धों की यादों को ताजा करने, यादों में डूबने ही इकट्ठे किये गये हैं?
परन्तु क्या ये यादें अब ताजा हो सकेंगी? मुझे ही, मेरे ही शरीर की इस यात्रा की ये यादें, मुझे ही पहचान सकेंगी? आज मुझ जीव को तो यह सब कुछ अलग, भिन्न, पृथक् ही लग रहा है. जैसे कि इन यादों में मैं ही नहीं! ये मेरी भी नहीं
मेरी याददास्त को कुछ भी नहीं हुआ. यह सारी घटनाएं भी तो बिलकुल सच ही हैं. इन यादों में दिखलाये संबंधो? इनको ही अब मैं कुछ अलग जान गया हूं, छिपे त्रिकाल सत को जान गया हूं मैं जीव तो कभी भी बदला ही नहीं, सब जानता ही रहा हूं?
देखो मैं साठ साल का नहीं, कुछ तो गलती हो गई है? यह तो शरीर ही हैं. मैं कोई भी संबंधों से बंधा भी नहीं. मैं तो स्वतंत्र, परिपूर्ण,शांतिमय, आनंदमय, वीर्यवान ही हूं. देखो जो गया सो गया मैं जीव अजर, अमर, अविनाशी,अयोगी, अबद्ध, ज्ञानानंद ही हूं.
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