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मेरे गुण हैं मुझमें, तेरे सारे गुण तुझमें मेरे गुण तो अनंत, जानूं देखू ही मुख्य तेरे रस, वर्ण, गंध, स्पर्श, कितने हैं भिन्न मैं अरूपी, तू रूपी, साथी बने संयोग से मैं हूं मुझ में पूरा, कैसे बनूं मैं तेरा, तेरा
मैं करूं मेरा, तू तेरा, दोनों हैं स्वाधीन कैसे मैंने माना कि तू हो सके मेरा मैं अकेला अयोगी, यही भाव कर्ता - हर्ता के बना रहे मुझे ही तेरा संयोगी और संसारी मैं हूं मुझ में पूरा, कैसे बनूं मैं तेरा, तेरा
मुझे गुरू ने मेरी ही मूर्छा से है उठाया स्वरूप बता मेरा ही विवेक है जगाया मैं हूं अडोल, अपरिणामी, निश्चिन्त, निर्भार शांत सुखमय ज्ञानानंदी यही है बताया मैं हूं मुझ में पूरा, कैसे बनूं मैं तेरा, तेरा
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