________________
-
मैं तुझमें तू ही मुझमें
पंचपरमेष्ठी तू ही मेरा संग है, पूज्य भी है तुझमें ही मेरा रूप है, तुझमें ही मैं जणाता हूं तुझे देखते, तुझे ही पूजते ही मुझे मेरा ही तुझमें प्रतिभास होता है, मुझ चैतन्य अनंत गुणों सहित ही मेरा ही स्वरूप मुझे जणाता है।
हे पंचपरमेष्ठी तुझ ही को इस संसार से मुक्त पुद्गलों से भिन्न और अप्रभावित देखकर मैं भी मुझको इस संसार से मुक्त और सारे संयोगी पुद्गलों से भी मुक्त देख पाती हूं तुझे पुद्गलों से अप्रभावित देख प्रभावित हो जाती हूं
हे पंचपरमेष्ठी तेरा सौम्य, अपरिणामी, स्थिर रूप देख ही मुझमें भी ऐसी ही शक्ति है, जानती हूं इसी शक्ति को जान, मान, पहचान में भी मुझे ही सारे पुद्गलों से अप्रभावित करती हूं मुझ अमर्यादित शक्ति का भी भान करती हूं
143