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वास्तव में तो मैं कभी कैदी बना नहीं और जैल भी कभी थी ही नहीं, अरे यह सारी मेरी मिथ्या कल्पना ही थी और अब तो हम स्वतंत्र हैं, थे, और रहेंगे
परिणमता संसारी कैदी और जैल है संबंध मुक्त सिद्ध अवस्था चैतन्य ही परिपूर्ण पुद्गल भी स्वयं मे ही परिपूर्ण और इस तरह जीव और पुद्गल दोनों स्वतंत्र
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