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तब गुरु कहते हैं यदि तुझे मिथ्यात्व दूर करना है, सच्चा मुमुक्षु आत्मार्थी बनना
है तो इस मिथ्यात्वको पलने न दे. इसे तो तू जड़से निकाल. ये तो फिर उग ही आयेगा. यहां-वहां, खयालोंमें, विचारोंमें, फिर पांच इन्द्रियोंकी क्रियाओं में
उग ही आयेगा, उग ही आयेगा
तू तो भक्ति, ज्ञान, स्वाध्याय, गुरुउपदेश, आज्ञा, सारेके सारे ओजार ले दिन और रात इसीमें लग जा. गुरुओंने इसे निकाल भगाया है, तू भी अवश्य
कर सकेगा. इसी श्रद्धा धीरज से तू तो पीछे लग जा, तेरा पुरुषार्थ कर ले तेरा स्वयंका पद, तेरा खुदका नित्य, चिदानंदी पौधा तेरी ही खुद की बगिया में
फूल उठेगा, महक उठेगा
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