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मिथ्यात्व
मेरा भी एक बगीचा है. बहुत ही हरा फला, फूला, इतना सुन्दर, लोभायमान ___ खुशबू और रंगोंसे भरपूर. उसमें वीड्स नहीं चाहिये, नही अच्छे लगें पौधों के बीचबीचमें आ ही जाते हैं. उनको में निकाल डालूं, और निकालूं भी तो जड से, नहीं तो आ ही जाते हैं. मेरे पूरे बगीचे को घेर लेते हैं, मेरे मनचाहे पौधोंको फलने, फूलने नहीं देते, मेरे मनचाहे पौधोंसे पानी धूप
मिट्टीकी खुराक, सभी छीन लेते हैं, छीन लेते हैं
कहीं मेरा मन चाहा पौधा सूख न जाये, मर न जाये इसीलिये मैं तो ओजार लेकर रोज रोज सुबह शाम इन वीङ्सको, निकालने का प्रयास करती हूं एकदिन यदि एक दिन मैं व्यस्त हो गई तो दूसरे दिन तो जैसे दुगना
नहीं, चारगुना नहीं, चालीसगुना काम लगता है
मेरे बगीचे में वीङ्स न हों इसके लिए तो जब मेरे मनचाहे पौधोंको बोउं उससे पहले भी मिट्टी के उपर एक मोटा प्लास्टिक डाल देती हूं. मिट्टीमें ऐसा मिश्रण डालती हूं जो वीङ्सको न दे उगने पर मेरे मनचाहे पौधोंको उगने दे उसे बड़ा होने दे. फिरभी मुझे सुबह शाम बगीचे में जाकर सारे वीड्स निकालने
पड़ते हैं. सभी ओरसे जड़ से निकालने पड़ते हैं
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