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मिथ्यात्व का विस्फोट
पहाडों को बनते सालों, अरसों लगते हैं, तभी वे इतने बड़े प्रभावशाली शक्तिशाली पहाड़ बन पाते हैं अपना मिथ्यात्व, आत्मा का उल्टा गलत ज्ञान भी अरसों पुराना है जैसे कि अनादि का ही हो. हम इस लोकालोक में परिभ्रमण करते करते इतने अरसों से निज आत्मा को, असली खुद को इस संसार के रंगों में, इन्द्रियों के विषयों में ऐसे तो भूल गये हैं कि जैसे मिथ्यात्व का पहाड़ ही बना लिया हो
स्वयं जीव का गलत ज्ञान, क्या है मेरा-पराया भूल जाना, सारे अजीव द्रव्यों को अपना मान उनमें ही दुखीसुखी होना, शरीर और शरीर के संबंधों को अपना मानना जैसे ये सारे पत्थर एक दूसरे से जुड़ ऐसे तो शक्तिशाली पहाड़ बना देते हैं कि मैं, मेरा सच्चा स्वरूप इस पहाड़ में दिखा ही नहीं देताजाना ही नहीं जाता
पहाड़ में से उपयोग में ला सकें ऐसे पत्थर चाहियें तो हम पहाडों में सुरंग लगा विस्फोट कर देते हैं. गुरु कहते हैं, हमारा जिनशासन कहता है, हमारे शास्त्र कहते हैं आत्मार्थी, यदि तुझे तेरा निज पद ढूंढ निकालना है, तेरे चिदानंदी, शुद्ध स्वरूपी को पहचानना है तो फिर तू भी भेद विज्ञान की सुरंग लगा इस मिथ्यात्व के पहाड़ का विस्फोट कर डाल, सारी जूठी मान्यताओं को बिखेर डाल,अपने निज से अलग ही हैं, दूर कर डाल. यही तेरी सच्ची तपस्या है, तेरा तप है, तेरी पूजा है. पंचपरमेष्ठियों ने अपना सबसे बड़ा दोष इसीको बताया है, और कहा है, तूपहले मिथ्यात्व को ही दूर कर, दूर कर
फिर आत्मार्थी अपने मार्ग में आगे बढ़ सकेगा,जिनशासन कायरों का नहीं,क्षत्रियों का है,सारे तीर्थंकर क्षत्रिय कुल में ही जन्म लेते हैं. आत्मार्थी, तू तो निडर बन, निर्भयता से इस मिथ्यात्व का विस्फोट कर डाल, विस्फोट कर डाल
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