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कितनी थी मैं गलत इसका भी ख्याल अवश्य ही आया अच्छा सच्चा दोस्त बनकर, एक सद्गुरू का संदेश आया जूठ सच का राज़ भी समझा, संबंधों में क्या है सच्चा और क्या है माया यह भी तो कुछ समझ में आया
अब दिखी सच्ची प्रीत है कैसी और इस हसने रोने के पीछे शाश्वत ऐसा शुद्ध आनंद और शांति भी है क्या मेरा खुदका अटूट, अलौकिक, अनुपम संबंध है क्या मैं तो मुझमें ही हूं पूर्ण मुझसे ही है प्रीत और संबंध भी
मुझमें ही मेरा निजपद मिल गया, शाश्वत पद भी निज भावों में ही प्रगटा ज्ञायक आनंद भाव भी झर गये वे सारे जूठे संबंध, खिल उठा अंतर कमल शांति के झरने झरे, महक उठी मेरी शाश्वत प्रीत भी
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