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पूज्य श्री गुरुदेव का दिया पाँचवा रत्न
गुरुदेव का पांचवा रत्न था कि इसमें धर्म कहां? जो परिणाम स्वतंत्रता से पर तरफ झुका है वही परिणाम स्वतंत्रता से स्व तरफ झुके तो धर्म की दशा प्रगट हो जाये. देखो तो गुरुदेव का कमाल
कर दिया आज मुझे तो मालामाल, बता दिया कि मैं तो स्वयं ही शुद्ध-बुद्ध परिपूर्ण मोक्षस्वरूप ही हूं अब पर्याय में प्रगट अनुभव स्वतंत्रता से ही होगा दशा तो अवश्य प्रगट ही होगी और मैं स्वयं ही
मेरे स्वयं के उपादान ज्ञान में ही अहं करूंगा मैं हूं अकर्ता, असंगी, अपरिणामी, अडोल गुरुदेव के बताये एक नहीं पांचों रत्नों पर दिन-रात ध्यान कर मेरे स्वयं में ही झांकंगा
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