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मेरा स्वयं का परिपूर्ण वीतराग ज्ञान ही तो मुझे बता रहा है तू चैतन्य राजा सभी अन्य द्रव्यों का ज्ञाता सारे द्रव्यों के परिणमन का भी ज्ञाता, और स्वयं को, स्वयं में, स्वयं से ही परिणमते जान रहा है न
ऐसा वीतरागी, सर्वज्ञ, ज्ञानस्वरूप मैं यह देखते जानते कि सभी स्वयं में ही, स्वयं से ही परिणम रहे हैं तो फिर कुछ फेरफार का विचार भी कैसा? यह महारत्न ही मेरा स्वयं का ज्ञानस्वरूप ही है न
वीतरागी निर्ग्रन्थ गुरु, मैं इस मनुष्य पर्याय में तेरा अनंत उपकारी. तूने ही तो मुझे जगाया और बताया मेरा स्वयं का भूला सर्वज्ञ चिदानंदी,अकर्ता, शाश्वत स्वरूप धन्य गुरु, धन्य वीतरागी जिन स्वरूप, धन्य मेरी वीतरागता!
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