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पूज्य श्री गुरुदेव का दिया तीजा रत्न
तीजा महा रत्न: उत्पाद, व्यय, ध्रुव की स्वतंत्रता उत्पाद, ध्रुव एवं व्यय की अपेक्षा ही नहीं रखता व्यय, ध्रुव एवं उत्पाद की भी अपेक्षा नहीं रखता और ध्रुव, उत्पाद एवं व्यय की अपेक्षा नहीं रखता
तीनों पूर्णता से ही, निरपेक्ष ही परिणमते हैं यही तो मेरा स्वयं का पूर्ण रूप से परिणमता ज्ञान ही है कैसे तो निकलता मैं निगोद से एवं वही जीव जो था निगोद में, परिणम जाता स्वयं की ही सिद्ध दशा में
इस महा रत्न पर कई पंडित एवं ज्ञानी भी कभी कभी खा जाते मात, पूज्य गुरुदेव ही, भावी तीर्थंकर ही, हम शिष्यों को समझा सके यह बात कहते हैं गुरुदेव याद रख तू ही है प्रभु कभी नहीं निगोद का जीव
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