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पूज्य श्री गुरुदेव का दिया दूजा रत्न
दूजा महा रत्न है पूज्य गुरुदेव का: क्रमबद्ध पर्याय जो द्रव्य की, जो पर्याय, जिस समय, जिस क्षेत्र में जिस विधि से, जैसी होती है, इसमें नरेन्द्र और जिनेन्द्र भी कुछ फेरफार नहीं कर सकते
इस दुनिया के छह द्रव्य, स्वयं की ही शक्ति से स्वयं में ही, स्वतंत्रता से परिणमन कर रहे हैं मैं ज्ञायक जीव का भी भिन्न भिन्न अवस्थाओं में परिणमन मेरे ही पर्यायों में, मझ शक्ति से होता है
अब पर्यायें बदलती रहें उससे भी मुझे क्या करना मैं जीव ध्रुव अचल, अडोल, स्थिर मेरी ही अनंत शक्तियों से सुशोभित स्वयं में ही परिपूर्ण हूं पर्यायें रहें एवं बदलें, मैं मुझमें ही परिपूर्ण हूं
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