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ज्ञायक
मैं तो ज्ञायक हूं प्रभु ज्ञायक हूंज्ञायक ही हूं मुझे जो ज्ञान में आ रहा है, वो तो सदियों से ही देख रहा हूं उसीमें ही तो एकत्व, ममत्व कर प्रभु मैं इस संसार में भटक भटक दुखी ही हो रहा हूं मैं तो ज्ञायक हूं प्रभु ज्ञायक हूं ज्ञायक ही हूं
इस सारे ज्ञान में जो सदियों से जान रहा हूं मैं अब थका हूं इस ज्ञान में तो तर्क-वितर्क कर, संकल्प-विकल्प कर आकुलता-व्याकुलता से अब मैं थका मैं तो निर्विकल्प, निराकुल, निराकारी ही हूं मैं तो ज्ञायक हूं प्रभु ज्ञायक हूं ज्ञायक ही हूं
यह सारा ज्ञान मुझे खंड खंड में ही खंडित ही मिलता है यह तो अधूरा हर समय हर दिन नये रंग लाता है इन रंगों से, रागों से, अब तो मैं बहुत ही थका हूं मेरा ज्ञान तो श्वेत, अखंड, वीतरागी, सम्पूर्ण ही है मैं तो ज्ञायक हूं प्रभु ज्ञायक हूंज्ञायक ही हूं
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