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दिन भी ऐसा पूरा होवे, शरीर को थकान लागे, शरीर सोवे, करवट बदले, सपने देखे जीव तो कभी थके नही और चेतन्य है जीव और शरीर साथ ही साथ, भूल जावे की हैं अलग अलग शरीर तो बचपनसे बूढ़ा होवे, उसे तो रूप, स्पर्श, रस, गंधसे जाने, फिर सड़े तो स्मशान में जलावे
जीव तो शुद्ध सुखी चेतन्यमय, अरुपी, अविनाशी और ज्ञानमय स्वको जाने, शरीरको जाने, फिरभी सबसे निराला, असंगी, और वीर्यवान है मैं तो जीव सदैव जागृत, न सोवू और न उढूं, न बच्ची, न जवान, न जावू श्मशान न इष्ट, न अनिष्ट, सदैव रहूं स्थिर स्वमें, ज्ञानमय, सुखमय, अडोल, और अविनाशी
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