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जीव
सबेरे मैं उठती हूं, किसने कहा मैं उठती हूं
ये शरीर ही तो उठता है और शरीर की क्रिया आरम्भ हो जाती है इस बीच जीव, जीवको याद करले, स्वयंकी यादमें रह स्वयं सुखमय रहे
भूख भी तो शरीर को लगे, पेट भी शरीर का भरे प्यास भी शरीर को लगे और तृप्त भी तो शरीर ही होवे जीव तो इन सबसे निराला, सदैव भरपूर और तृप्त है
अच्छा बुरा भी तो बाहर ही होवे, उसके कारण भी बाहर कर्मोंके उदयसे इच्छा जागे, पूरी होय तो अच्छा लागे बाहरके कारणों से बेचेनी होवे, इधर उधर भटकना होवे जीव तो शुद्ध ज्ञानमय, सदैव शांत और अडोल है
मनको तो सदैव कुछ करना होवे, जागते ख्वाब, सोते सपने देखे शरीर को दौड़ाये, बुद्धि को दौड़ाये, सदैव इष्ट अनिष्ट का चक्कर चलाये दुनिया में तो सभी जिस तरह है, जिस प्रकार है वही इष्ट जीव तो सभी में इष्ट समझे और निर्विकल्प है
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