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गंडू राजा तो था विद्वान, उसने तो समझा था नव तत्त्वों का ज्ञान, उसके लिए तो थे भाजी और मावा सब एक दाम
इसीलिए गुरुओं ने समझाया, शिष्य तू न बन पागल इन अजीव द्रव्यों पर, न ललचा जा इन पर और अन्दर से ही अपनी मान्यता को बदल, और स्व को पहचान, उसको जान, और उसकी कीमत को जान, उसे सिर्फ जानेगा, अंतरंग से मानेगा, तो फिर तो बस एक भव हों या पंद्रह, तू भी पायेगा वो अविनाशी मोक्ष पद, जिसकी कीमत संसार में हो ही न सके तू तो बस सदैव आनंद विभोर, और सुखी, तभी तो तू मिटाए तेरी अंधेरी नगरी और हो जाये सदैव के लिए स्व पर प्रकाशी, कभी भी न चढ़े उस सूली पर और जीये हमेशा, हमेश