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________________ गंडू राजा एक कहानी सुनी थी बचपन में हमने कि, एक थी अंधेरी नगरी और उसका था गंडू राजा उसके राज में कहते हैं, था टके सेर भाजी और टके सेर खाजा कहते हैं कैसा तो पागल था, न जाने कीमत वो भाजी की और खाजे की कैसे राज कर सके प्रजा पर ऐसा राजा, न प्रजा बन सके सुखी उसके राज में और नहीं प्रजा उसे माने राजा, वो तो समझे पागल है ये राजा लेकिन जब पढ़ी, सुनी और समझी जिनवाणी, उन वीतराग गुरुओं से जिन्होंने पाया स्वआत्मा को, तभी तो अपना पागलपन भी समझ आया परद्रव्य तो परद्रव्य ही है, चाहे वो हो भाजी या खाजा, खाजे के स्वाद में ललचा के, देता है जीव बड़े बड़े दाम, बढ़ाता है परिभ्रमण को और दुखी होता है भवोभव कीमत तो स्व की न पहचानी, न जानी, पागलपन तो देखो कि खुदके जेवरात छोड़ पीछे पड़े इस घरबार के और मेवे और भाजी के, न ये मेरे थे, न होंगे,और न कभी हो सकें मेरे, पाप पुण्य के चक्कर में वे ललचातें हैं मुझे और मैं भी पागल ललचा जाता हूं और करता हूं दिन रात एक उन्हीं के लिए एक, स्व को छोड़, स्व के गुणों को छोड़, स्व की वीर्यता, और विनाशी आनंद को छोड़, पीछे पड़ गया मैं इन संसारी चीजों के, पागल तो हूं हीं मैं कितना वो तो आज कुछ समझ आया 110
SR No.009269
Book TitleMukt Gulam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUsha Maru
PublisherHansraj C Maru
Publication Year2014
Total Pages176
LanguageGujarati, Hindi, English
ClassificationBook_Gujarati, Book_Devnagari, & Book_English
File Size23 MB
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