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अब इन सबसे खुद को, अलग ही समझू अलग ही तो हूं, मेरे मिथ्यात्व को छोडूं फिर तो सारे सिद्धांतों को स्वयं में देखना है नौ तत्त्वों को खुद् में अनुभवना है और स्व तत्त्व को जान, पहचान, सारी दुनिया में जीव, खुद को खुद में ही परिपूर्ण पाना है
इसी तरह जैन दर्शन की, सत देव-गुरु-शास्त्र की महिमा आती है, श्रद्धा जागती है, अर्पणता होती है जीव समर्पण होकर स्वयं को, चैतन्य को पा लेता है और खुद से खुद चैतन्य पद ही बन जाता है
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