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खुद से खुद पद
शरीर में तो दु:ख का अनुभव होता है मैं तो ज्ञान स्वरूपी, शांतिमय, आनंद हूं शरीर के सारे सम्बंधों में तो दु:ख सा अनुभव होता है मैं तो आनंद हूं, आनंद हूं
इन्द्रियों के विषयों में भी दुःख ही नजर आता है उन्हें पा लें या न पायें सभी में दुःख का ही अनुभव होता है. क्षणिक समय के लिये लुभावना लगे मगर दुःख ही है
शरीर, इन्द्रियां, मन, बुद्धि, दु:ख ही तो देतें है, लेकिन वे हैं, तो उन्हें पालता है कौन? इस दु:ख को पहचानता है कौन ? ज्ञान स्वरूपी तो मैं आत्मा ही हूं न
और कोइ कैसे जान सके, अनुभव कर सके जितना मैं इस शरीर, शरीर के संबंध, इन्द्रियों से एकत्व करता हूँ उतना ही ज्यादा दु:ख का अनुभव होता है
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