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आनंद ही आनंद हूं
एक ताल हो या दो ताल,मैं तो सदैव ताल से भिन्न, ताल का ज्ञानी आनंद ही आनंद हूं ठंडी हो या गर्मी हो, मैं तो सदैव अशरीरी, ऋतुओं का ज्ञानी, आनंद ही आनंद हूं काला, सफ़ेद या हो रंगीन, मैं तो सभी रंगों से निराला, सभी रंगों का ज्ञानी, आनंद ही आनंद हूं घनघोर हो अंधियारा या उजाला, मैं तो सदैव ज्ञानी स्वयं ही उजाला, सभी द्रव्यों का ज्ञानी, आनंद ही आनंद हूं जीव हों एकेन्द्रिय या पंचेन्द्रिय, और हों चोरासी लाख योनियों में, मैं तो शुद्ध चैतन्य ज्ञानी, आनंद ही आनंद हूं जन्म हो या हो मरण, मैं तो अविनाशी, सदैव ध्रुव, अखंड और अडोल, ज्ञानानंदी. आनंद ही आनंद हूं स्वर्ग हो या नरक, या हो पृथ्वीलोक, मैं तो त्रिकाली सभी लोकों का ज्ञानी, आनंद ही आनंद हूं ताल हो सुरीली या हो बेसुरी, द्रश्य हो रमणीय या हो न देखने योग्य, मैं तो सबका ज्ञानी, आनंद ही आनंद हूं मेरे लिए न कोई इष्ट या अनिष्ट, मैं तो सबका सब प्रकार से, परिपूर्ण ज्ञानी, आनंद ही आनंद हूं
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