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आतम भावना भावता
गुरुने कहा आतम भावना भावता जीव लहे केवल ज्ञान रे कहा शिष्य से इसे तू याद कर, इसीकी माला फेर, इसीका ध्यान धर ये कैसे तो भाव हैं जो जीव में केवल ज्ञान प्रगट कर देवें क्या ये भाव दया, शांति, क्षमा के, कि ये भाव पूजा, पाठ, तप, व्रत के भाव तो अवश्य होंगें मंदिर जाने के, स्वच्छ हो, श्रृंगार कर मैं मंदिर जाऊं वहां जिन दर्शन कर मंत्रोच्चार करूं, चन्दन, केसर, नव अंग पूजा करूं मंदिर जाते दिखती है गंदगी और गरीबी, भाव हैं सफाई के और न्याय के मंदिर जाते दिखते हैं बहुत प्राणी, खुद खुद की शरीर क्रिया में ओत प्रोत इन सबसे अलग हैं क्या आतम भाव? शिष्य विचारे कैसे होते हैं ये आतम भाव भाव होतें हैं कुछ करने के, कुछ पाने के, भाव होतें हें प्यास के और तृप्त होने के इन सबसे अलग हैं क्या आतम भाव ? भाव होते हैं पांच इन्द्रियों के विषय के भाव होतें हैं मन बुद्धिसे, भाव होतें हैं सुख-दुःख के, कि हास्य शोक के इन सबसे अलग हैं क्या आतम भाव? आत्मा तो ज्ञान और आनंद से भरपूर आत्मा तो श्रद्धा और दर्शन से ओत प्रोत, आत्मा तो भरी हे शांत और निर्विकल्प दशा से
आत्मा में तो है केवल ज्ञान, आत्मा में तो सिद्धों जैसा आनंद और स्थिरता आत्मा में तो अरिहंतों की वीर्यता और वीतरागता, आत्मा तो शक्तियों का भंडार ऐसे ही आत्मा को तू याद कर, ऐसे ही आत्मज्ञान में रमण कर, आत्मानंद जीव तू खुद है उसी आनंद में तू खो जा. और फिर ध्यान कर कि क्या गुरु ने कहा, स्वयं की आत्म का भाव, आत्म गुणों का विचार, स्व आत्म का आनंद और स्व आत्म में लीन हो, और उसी ध्यान में जीव लहे केवल ज्ञान रे 106