SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 106
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जैन धर्म एक अचरज दुनिया तो दुनिया के अचरज ही बताती है, ताजमहल, पिरामिड. हमारे गुरुओं, जैन साधुओं ने तो स्वयं के शरीर में ही परमात्मा को जान, अनुभव कर हम सबको बताया, समझाया. क्या यह नहीं है अचरज ? जैन मुनि तो कहते हैं, मानव तू मान या मत मान हम तो प्रत्यक्ष अनुभव करके ही, तू सच में है कौन यही तुझे बता रहे हैं. करुणा है मुनियों की जो हमें मोक्ष मार्ग बताया. क्या यह नहीं है अचरज ? इसी शरीर में, जो दिन-ब-दिन बच्चे से जवान और फिर हो जाये बूढ़ा, कैसे हो सकता है अजर, अमर, अविनाशी तत्व आत्मा ? रूपी शरीर में ही हम भूले स्वयं अरुपी को. क्या यह नहीं है अचरज ? इन इन्द्रियों और शरीर का तो क्या कहना ! प्रातः काल में ही कइयों को चाहिए बीड़ी तो कइयों को चाय. किस न किस नशे में मानव करे इस शरीर की क्रिया ओर इसीमें बसे भगवान. क्या यह नहीं है अचरज ? शरीर को लगे गर्मी या ठंडी सहन ही न होवे. दौड़े वो ठंडे पानी, गर्म कपड़े काज. गर्म या ठंडे घरों में. जैन मुनि नग्न अवस्था, विचरे जंगलों में, मालूम ही नहीं ठंडी-गर्मी क्या ? क्या यह नहीं है अचरज ? शरीर को प्यास लगे, भूख लगे. खानपान बगैर तो जैसे मर जाये. मैं जीता ही हूं रोटी कपड़े, मकान के लिये. जैन मुनि, जिन्हें रोटी, कपड़े, मकान का तो विकल्प भी न आवे . क्या यह नहीं है अचरज ? 104 |
SR No.009269
Book TitleMukt Gulam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUsha Maru
PublisherHansraj C Maru
Publication Year2014
Total Pages176
LanguageGujarati, Hindi, English
ClassificationBook_Gujarati, Book_Devnagari, & Book_English
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy