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न जिंदगी है न मौत
न दीन है न दयाल
न इन्सान है न भगवान
मैं
हूं
मुझे जिंदगी भी स्वीकार है, और स्वीकार है मौत मुझे गरीबी भी स्वीकार और स्वीकार दया भाव मुझे राग-द्वेष कहो, कहो इन्सान, अथवा कहो भावरूप यह भी स्वीकार है, मेरे ही प्रकाश से, ज्ञान से
जो हो रहा प्रतिक्षण स्वयं ही हर द्रव्य में वही तो जान रहा हूं मेरे ज्ञान में कुछ बदलने के विकल्प की भी जहां न हो गुंजाईश ऐसा निर्विकल्प, त्रिकाल, शुद्ध, चैतन्य, उज्जवल, ज्ञायक ही हूं मैं
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