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से ज्ञानगर्भित वैराग्य प्राप्त होता है। ज्ञानगर्भित वैराग्य प्राप्त होने पर विषयों का त्याग करके मन मुक्ति की इच्छा करता है।(२)
___ आत्मा का ज्ञान हुआ है ऐसे मन की विशेषता क्या? जिसे आत्मा का ज्ञान हुआ है वह व्यक्ति क्षुद्र विचार कभी भी नहीं करता, चित्त की क्षुद्रता का त्याग करता है।(७) क्षुद्र विचार यानी हलके और नकामी विचार। आत्मा सिवाय के सभी विचार ही है ना? सात्विक विचार अजब बल देते हैं। सतत, स्थिरतापूर्वक और सन्मानपूर्वक सात्विक विचार करते रहने से संसार का आकर्षण कम होता है। धीरे-धीरे संसार को भूलाने की प्रक्रिया शुरु होती है। विषय-कषाय कम होते जाते है। मन खिलने लगता है। इस तरह विशुद्ध हुआ मन आत्मा तक ले जाता है। क्रम से अभ्यास द्वारा आत्मनिष्ठ योगी के बाह्य भाव के संबंधी स्मरण कम होता जाता है। उसका मन शून्य बनता है।(४३)
(मन की) चिंता और (शरीर की) चेष्टा का त्याग करने से अनायास खुद के स्वरूप में ले जाता है। उससे शुभ-अशुभ कर्मों का क्षय होता है।
नमस्कार पदावली नाम की कृति में आठ रचनाओं का समावेश होता है। नमस्कारस्तुति, नमस्कारस्तव, नमस्कारनिरूपण, नमस्कारनुति, नमस्कारकीर्तन. नमस्कारफल, नमस्कारविवेचन और नमस्कारस्मृति। प्रत्येक रचना में पचासपचास श्लोक है। इस प्रकार कुल चारसौ श्लोकों में श्री नवकार महामंत्र का महिमागान यहाँ हुआ है।
पंन्यासजी महाराज का नवकारप्रेम सर्वविदित है। नमस्कार पदावली में उसका सुरेख प्रतिबिंब झलकता है। मध्यकाल में ऐहिक प्रभाववाले मंत्रतंत्र का बहुत प्रचलन हुआ। मोक्ष देनेवाले नवकार का उपयोग ऐहिक फल के लिये होने लगा। नवकारमंत्र के तांत्रिक प्रयोग भी होने लगे। उसके अध्यात्मिक शक्ति का विस्मरण होने लगा। इसका असर उत्तरकाल पर पडा। नवकार की ऐहिक महिमा ही बहुत गायी गयी। इस स्थिति में नवकार आत्मा और मोक्ष के लिये है यह बात प्रभावपूर्वक प्रस्तुत करनेवाली कृतियाँ बहुत कम मिलती है। उसमें नमस्कार पदावली को स्थान दे सकते है। नमस्कार पदावली में नवकार का आध्यात्मिक चमत्कार ही प्रधानता से प्रस्तुत किया है।