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________________ इस संसार में हर एक प्रकारका ऐश्वर्य मिलता है। नवकार से निर्वाण मिलता है।(१-२) हृदय में वैराग्य धारण कर, पौद्रलिक सुख को छोडकर भाव से नवकार का जाप करने से मोक्ष मिलता है।(२-३१) नवकार गुरुमुख से लेने पर ही फलदायी बनता है। गुरुमुख से लिया हुआ नवकार सवीर्य होता है।(१-४६,२-२,४-३,८-२) ___ नवकार से दुर्ध्यान का नाश होता है, मन निश्चल बनता है, ज्ञानयोग सिद्ध होता है।(३-५, १३, २३) नवकार के द्वारा आत्मसाधना के मार्गपर आगे किस तरह से बढना, उसका ज्ञान अपने आप होता है। उसके लिये चित्त शुद्ध होना चाहिए।(५-३) नमस्कारस्तुति में नवकार की सामान्य और विशेष महिमा है। नवकारस्तव में नवकार का स्मरण करने की प्रेरणा है। तंत्रशास्त्र और हठयोग की दृष्टि से नवकार का ध्यान करने की आसान रीति इसमें दर्शाई है। नमस्कारनिरूपण में नवकार से क्या क्या हो सकता है वह दिखाया है। नमस्कारनुति में नवकार के गुणों का वर्णन करके नमस्कार करने में आया है। नवकार में गुरु के आत्मा का अंश होता है।(२४) आत्मसाधना के क्षेत्र में आवश्यक पात्रता का विकास करने में नवकार किस तरह सहायभूत होता है, उसका वर्णन नमस्कारकीर्तन में है। स्वर्ग वगैरे की इच्छा छोडकर नवकार का ध्यान करने से पापों से मुक्ति मिलती है।(३२) नमस्कारफल में स्वाभाविक रीति से ही नवकार के बाह्य और आंतरिक फल का वर्णन है। आत्मा का विचार, आत्मतत्त्व का बोध, आत्मानुभव की प्राप्ति, आत्मा का स्फुरण नवकार का फल है।(१०,१७,२०,३२) नवकार जीवन में आनेपर आत्मिक परिवर्तन का अनुभव होता है। उसका वर्णन नमस्कारविवेचन में है। नमस्कारस्मृति में नवकार के उपलक्ष में उसे साकार
SR No.009267
Book TitleYogkalpalata
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGirish Parmanand Kapadia
PublisherShrutbhuvan Sansodhan Kendra
Publication Year2015
Total Pages145
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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