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________________ रूप देकर स्तुति की है। नवकार का ज्ञानात्मक, योगात्मक और भावात्मक निरूपण एकसाथ नमस्कारपदावली में देखने मिलता है। ___आशाप्रेमस्तुति तंत्रदृष्टि से कुंडलिनी शक्ति की महिमा गानेवाली स्तुति है, ऐसा कर्ता का कहना है। गिरीशभाई के अन्य कृतियों की तुलना में यह कृति अलग प्रतीत होती है। तंत्र में कुंडलिनी को स्त्री की उपमा देकर उसकी महिमा गाई है। इसमें सराग और कभी तो अश्लीलप्रायः वर्णन होता है। यह जैन साधनाप्रक्रिया के अनुकूल नही है। योगप्रक्रिया के संदर्भ में हठयोग की तुलना में राजयोग सामान्य साधकों को बहुत अनुकूल लगता है। योगायोग से गिरीशभाई के पत्नी का नाम भी आशा था। अतः भ्रम होने की संभावना ज्यादा है। इस कृति का नाम 'योगकल्पलता' हमने रखा है, क्योंकि यह संकलन गिरीशभाई की तीन कृतियों के त्रिवेणी संगमरूप है और मुक्ति संगमरूप अमृतफल प्रदान करनेवाली कल्पवल्ली समान है। योगाचार्यों ने मोक्ष के सम्बन्ध को ही योग कहा है। आन्तरिक क्लिष्ट चित्तवृत्तियों को पवित्र करनेवाले शुभ विचार गिरीशभाई की कृतियों में पद-पद में दृष्टिगोचर होते हैं। अतः यह नाम सार्थक प्रतीत होता है। (वैसे कर्ता के उपनाम का अंश भी इसमें समाहित है।) ऐसी उत्तम आध्यात्मिक रचना वर्तमान काल में हो रही है और उसका आस्वाद लेनेवाला वर्ग भी है यह जैनशासन के लिये गौरवपूर्ण बात है। - वैराग्यरतिविजय
SR No.009267
Book TitleYogkalpalata
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGirish Parmanand Kapadia
PublisherShrutbhuvan Sansodhan Kendra
Publication Year2015
Total Pages145
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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