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________________ ।।नमस्काराष्टकम्।। नत्वा वीरं गुरुं भक्त्या जननीं जनकं तथा । सर्वसिद्धिकरं कुर्वे नमस्काराष्टकं शुभम्।।१।। भक्तिपूर्वक भगवान् महावीर को, गुरु को एवं माता पिता को नमस्कार करके सभी कार्यों को पूर्ण करनेवाले कल्याणकारक नमस्काराष्टक की रचना करता हूँ ।। १ ।। महामङ्गलरूपो हि सर्वपापप्रनाशकः । भुक्तिमुक्तिप्रदः प्रोक्तो नमस्कारो जिनेश्वरैः ।। २॥ महामंगलरूप, सभी पापों का नाश करनेवाला, भोग तथा मुक्ति प्रदान करनेवाला नमस्कार है, ऐसा जिनेश्वरों के द्वारा कहा गया है ।।२।। अनादिसिद्धमन्त्रं तं रागादिध्वंसकं मुदा । कृत्वा नादानुसन्धानं नमस्कारं सदा स्मर । । ३ । अनादि काल से सिद्ध मंत्र जो रागादि दोषों का नाश करके आनंददायी है, नाद का अनुसन्धान करके नमस्कार का हमेशा स्मरण करो || ३ || नमस्कारेण मन्त्रेण सद्गुरोः कृपया ध्रुवम्। जायते तत्क्षणादेव मन्त्रचैतन्यमद्भुतम्।।४।। सद्गुरु की कृपा से नमस्कार मंत्र के द्वारा उसी क्षण मंत्र में अद्भुत संवेदना निर्माण होती है।।४। सान्द्रानन्दस्वरूपाय स्वयंस्फुटाय तत्त्वतः । चैतन्यज्योतिषे तस्मै नमस्काराय मे नमः ॥ ५ ॥ अमन्द आनन्द स्वरूप, स्वयंभू संपन्न, उस चैतन्यज्योतिषरूप नमस्कार को मैं नमस्कार करता हूँ।।५।।
SR No.009267
Book TitleYogkalpalata
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGirish Parmanand Kapadia
PublisherShrutbhuvan Sansodhan Kendra
Publication Year2015
Total Pages145
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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