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योगकल्पलता
मम बन्धुर्मम प्राणा मम सर्वस्वमेव हि।
लोके त्वं हि नमस्कार! शपथेन ब्रवीमि ते।।४८।। हे! नमस्कार मैं शपथपूर्वक कहता हूँ कि इस लोक में तुम्ही मेरे बन्धु हो, मेरे प्राण हो तथा मेरा सर्वस्व (सब कुछ) हो।।४८।।
सद्भक्त्या त्वां प्रपन्नोऽस्मि मत्वैवालम्बनं परम्।
अत एव नमस्कार! रक्ष रक्ष सदा हि माम।।४९।। तुम्ही मेरा सहारा हो, यह मानकर सद्भक्ति से तुम्हारे शरण में आया हूँ, हे! नमस्कार मेरी रक्षा करो-रक्षा करो।।४९।।
गुरोर्भद्रङ्कराख्यस्य पन्न्यासपदधारिणः।
प्रसादाद्रचिता रम्या नमस्कारस्मृतिर्मया।।५०।। पंन्यास गुरु श्री भद्रकर विजय की कृपा से मेरे द्वारा यह सुन्दर नमस्कारस्मृति रची गई।।५।।
।।इति नमस्कारपदावली।।