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________________ ७४ योगकल्पलता गुरूपदिष्टमार्गेण भव्यानां भावितात्मनाम्। स्वानुभूतिर्भवत्येव नमस्कारान्न संशयः।।६।। गुरु ने उपदेश किये हुये मार्ग से अपनी आत्मा को भावित करनेवाले मनुष्य को नमस्कार मंत्र से आत्मा की अनुभूति होती ही है, इसमें संशय नहीं है।।६।। अरतिर्विषयग्रामे स्वात्मन्येव रतिः सदा। जीवन्मुक्तिस्तथा सिद्धिनमस्कारस्य सत्फलम्।।७।। विषयों के संग्रह में आसक्ति का अभाव, हमेशा स्वात्मा में ही लीन रता, जीवन्मुक्ति तथा सिद्धि नमस्कार मंत्र का फल है।।७।। गुरुप्रसादपूर्णानां प्रशमोपगतात्मनाम्। नमस्कारे मनो लीनं निर्विकल्पं भवेद्धवम्।।८।। जिन्हें गुरु की कृपा तथा आत्मा की शान्ति प्राप्त हुई है, निश्चित ही उनका मन नमस्कार मंत्र में एकाग्र होकर विकल्परहित होता है। वाच्यवाचकसम्बन्धात्परमेष्ठिमयं खलु। प्रस्तौमि त्वां नमस्कार! शब्दब्रह्मन्! मुहुर्मुहुः।।९।। नमस्कार मंत्र वाच्य-वाचक संबंध से यह पंच परमेष्ठिमय है। हे शब्दब्रह्म! नमस्कार! मैं तेरी बार बार स्तुति करता हूँ। गुरोर्भद्रङ्कराख्यस्य पन्न्यासपदधारिणः। प्रसादाद्रचितं शीघ्रं नमस्काराष्टकं नवम्।।१०।। गुरुवर पंन्यास श्री भद्रङ्करविजय महाराज की कृपा से इस नये नमस्काराष्टक की शीघ्र रचना हुई है।।१०।।
SR No.009267
Book TitleYogkalpalata
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGirish Parmanand Kapadia
PublisherShrutbhuvan Sansodhan Kendra
Publication Year2015
Total Pages145
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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