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नमस्कारफलम्
अभेदभाव से जब जिनेश्वर अर्हत् का ध्यान होता है तब ध्याता को भाव से अरिहंत तत्त्व की उपलब्धि होती है यह नमस्कार का फल है ।। ४०॥
सर्वत्राभ्युदयो लोके तथा मुक्तिः करे स्थिता । द्वयं लोकोत्तरं ह्येतन्नमस्कारस्य सत्फलम्।।४१।
लोक में हर जगह अद्भुत अभ्युदय तथा हाथ में मोक्ष ये दोनों लोकोत्तर (तत्त्व) नमस्कार के ही फल है ।। ४१ ।।
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विना क्लेशेन सद्ध्याने प्रत्ययेन समादरः ।
अल्पीयसैव कालेन नमस्कारस्य सत्फलम्।।४२।।
अल्प समय में और बिना किसी कष्ट के सद्ध्यान में प्रतीतिपूर्वक का आदर होना नमस्कार मंत्र का फल है॥४२॥
योगदृष्ट्यनुसारेण बोधोत्कर्षो यथाक्रमम्।
अष्टाङ्गयोगसिद्धिश्च नमस्कारस्य सत्फलम् ।।४३।
योग दृष्टि के अनुसार क्रमिक रूप से बोध का उत्कर्ष तथा अष्टाङ्ग योग की सिद्धि नमस्कार का फल है ॥४३॥
निष्कामं सदनुष्ठानं ब्रह्मज्ञानसमन्वितम्।
स्वात्मन्येव लयश्चैव नमस्कारस्य सत्फलम्।।४४।।
ब्रह्मज्ञान से युक्त होकर निष्काम भाव सहित सदनुष्ठान और आत्मलीनता यह नमस्कार का फल है ।। ४४ ।।
शाब्दज्ञानाद्धि भव्यानां तत्त्वनिश्चभूमिका ।
अपरोक्षानुभूतिश्च नमस्कारस्य सत्फलम्।।४५।।
भव्यों को शाब्दज्ञान से तत्त्व के निश्चय की भूमिका की प्राप्त होना तथा अपरोक्ष (साक्षात् प्रत्यक्ष आत्मा) की अनुभूति' नमस्कार मंत्र का फल है ।। ४५ ।।
१ परोक्षानुभूति वेदान्तदर्शन का पारिभाषिक शब्द है । ब्रह्मप्राप्ति उनका अर्थ है ।