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योगकल्पलता
आनन्दजन्यरोमाञ्चास्तथैवाश्रूणि नेत्रयोः।
प्रशान्तवाहिता सम्यग् नमस्कारस्य सत्फलम्।।४६।। शरीर में रोमांच, आँखों में आनंदाश्रु और (चित्र में) प्रशान्तवाहितता नमस्कार मंत्र का फल है।।४६।।
चिच्छक्तेरवबोधश्च सर्वत्र समता वरा।
अभेदाद्देवताभावो नमस्कारस्य सत्फलम्।।४७।। अपनी चैतन्य शक्ति का बोध, हर विषय में श्रेष्ठ समभाव, अभेद भाव से देवता रूप प्राप्ति यह नमस्कार का फल है।।४७।।
अधिकारो हि तन्त्रेषु चान्तर्यागस्य योग्यता।
निष्प्रत्यूहतया मोक्षो नमस्कारस्य सत्फलम्।।४८।। शास्त्रों पर अधिकार, अन्तर्याग की योग्यता तथा निर्विघ्न रूप से मोक्ष की प्राप्ति यह नमस्कार महामन्त्र का फल है।।४८।।
अचिन्त्यपुण्यलाभो वै तीर्थकृत्पदवी पुनः।
अयोगयोगसिद्धिश्च नमस्कारस्य सत्फलम्।।४९।। अकल्प्य पुण्य की प्राप्ति, तीर्थकर पद की प्राप्ति और अयोगयोग की सिद्धि नमस्कार महामन्त्र का सत्फल है।।४९।।।
गुरोर्भद्रङ्कराख्यस्य पन्न्यासपदधारिणः।
प्रसादाद्रचितं ह्येतन्नमस्कारस्य फलं शुभम्।।५०।। पंन्यास प्रवर श्री भद्रकर विजय म.सा. गुरु की कृपा से यह नमस्कार फल (नामक) शुभ ग्रन्थ की रचना की गयी।।५।।।