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योगकल्पलता
जिनोक्तभावनायोगात्परिणामविशुद्धितः।
गुणस्थानक्रमारोहो नमस्कारस्य सत्फलम्।।३५।। जिनवाणी की भावना के योग से एवं परिणाम विशुद्धि से गुणस्थान के क्रम का आरोहण नमस्कार का ही फल हैं।।३५।।
पुण्यवृद्धिस्तथा शीघ्रं पातकानां निवारणम्।
समाधिमरणं चान्ते नमस्कारस्य सत्फलम्।।३६।। पुण्य की वृद्धि, शीघ्र ही पापों का निवारण तथा अन्त में समाधिमरण नमस्कार मन्त्र के प्रभाव से होते हैं।।३६।।
रहस्यं ध्यानमार्गानां सुस्पष्टं गुर्वनुग्रहात्।
परमध्यानसिद्धिश्च नमस्कारस्य सत्फलम्।।३७।। गुरु की कृपा से ध्यानमार्ग के रहस्य का बोध और परमध्यान की सिद्धि नमस्कार मंत्र का फल हैं।।३७।।।
पराप्रसादसम्प्राप्तिः सर्वकल्याणकारिणी।
स्वेच्छया विनियोगोऽपि नमस्कारस्य सत्फलम्।।३८।। सर्वकल्याण करनेवाली परा' (वाणी) की प्राप्ति और उसका स्वेच्छा से विनियोग नमस्कार महामन्त्र का फल है।।३८।।
आज्ञासङ्क्रमणं शिष्ये दृष्टिपातेन सत्वरम्।
वेधशक्तिर्महातीव्रा नमस्कारस्य सत्फलम्।।३९।। शिष्य के ऊपर मात्र दृष्टिपात करने से आज्ञा संक्रमण (करने की शक्ति) तथा तीव्र वेध शक्ति यह नमस्कार मन्त्र का सत्फल है।।३९।।
अभेदेन सदा सम्यग् ध्यायतेऽर्हजिनेश्वरः। भावार्हन्त्यं तदा ध्यातुनमस्कारस्य सत्फलम्।।४०।।
१ परा, पश्यन्ती, मध्यम और वैखरी ये वाणी के चार प्रकार है । २ वेधशक्ति-सामान्य जनों के लिये अप्राप्य पदार्थों के तल तक पहोंचने की शक्ति। जैसे-मानव का मन।