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________________ ३४ योगकल्पलता हेतवे तन्त्रविद्यानां भववारिधिसेतवे। शब्दब्रह्मस्वरूपाय नमस्काराय मे नमः।।३६।। संसाररूप सागर के सेतु, तन्त्रविद्याओं का कारण ऐसे शब्दब्रह्म स्वरूप नमस्कार महामन्त्र को मैं नमन करता हूँ।।३६।। समापत्तिप्रदानेन जीवात्मपरमात्मनोः। ऐक्यं करोति यस्तस्मै नमस्काराय मे नमः।।३७।। समापत्ति का प्रदान करके जीवात्मा और परमात्मा दोनों को एक करनेवाले नमस्कार महामन्त्र को मेरा नमन हो।।३७।। प्रौढसंवित्स्वरूपाय ब्रह्मभावविधायिने। प्रकाशैकस्वभावाय नमस्काराय मे नमः।।३८।। प्रौढ ज्ञान ही जिसका स्वरूप है, जो ब्रह्मभाव का विधान करनेवाला है ऐसे प्रकाशमय नमस्कार मन्त्र को मैं नमन करता हूँ।।३८।। योगाङ्गपरिपूर्णाय चिदानन्दप्रदायिने। चित्तान्तर्गतमन्त्राय नमस्काराय मे नमः।।३९।। योग से पूर्ण अङ्गवाले चित्त के अन्दर ज्ञानरूप आनन्द देनेवाले चित्त में रहनेवाले नमस्कार महामन्त्र को नमन हो।।३९।। मन्त्रस्यार्थविकासार्थं मनोमालिन्यनाशिने। आनन्दमग्नचित्तेन नमस्काराय मे नमः।।४०।। मन्त्र के अर्थ विकास के लिए, मन की मलिनता (उदासीनता) को नाश करनेवाले नमस्कार महामन्त्र को आनन्द में सराबोर मन से नमन करता हूँ।।४।। तायिने सर्वपापेभ्यः स्वर्गापवर्गदायिने। सानुबन्धाय योगाय नमस्काराय मे नमः।।४१।। स्वर्ग और मोक्ष को देनेवाले, सभी पापों से मुक्त करानेवाले सानुबन्ध (परंपरा सहित) योगरूप ऐसे नमस्कार महामन्त्र को मेरा नमन है।।४१।।
SR No.009267
Book TitleYogkalpalata
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGirish Parmanand Kapadia
PublisherShrutbhuvan Sansodhan Kendra
Publication Year2015
Total Pages145
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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