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नमस्कारनुतिः
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श्रुतसाराय ताराय कैवल्यबीजरूपिणे।
समताध्यानवृद्ध्यर्थं नमस्काराय मे नमः।।३०।। सभी श्रुतों के सार, संसार से तारनेवाले, कैवल्य के बीजरूप नमस्कार महामन्त्र को समताध्यान में वृद्धि के लिए मेरा नमन हो।।३०।।
भावनाभिः सदा चित्ते स्थिरीकृताय यत्नतः।
पावनाय पवित्राय नमस्काराय मे नमः।।३१।। पवित्र भावना द्वारा यत्न करने से जो चित्त में स्थिर होता है उस पावन नमस्कार मन्त्र को मेरा नमन हो।।३१।।
शुक्लध्यानाग्नियुक्ताय सर्वकर्मविदाहिने।
सर्वोत्तमाय मन्त्राय नमस्काराय मे नमः।।३२॥ शुक्लध्यान के तेज से युक्त, (अत एव) सभी कर्मों का दहन करनेवाले, सभी मन्त्रों में उत्तम नमस्कार मन्त्र को मेरा नमन हो।।३२।।
पाथेयं मोक्षमार्गे तु स्मरणं परमेष्ठिनाम्।
तेषां मन्त्रस्वरूपाय नमस्काराय मे नमः।।३३।। परमेष्ठियों का स्मरण मोक्ष मार्ग का पाथेय (संबल) है, उनके मन्त्रस्वरूप नमस्कार महामन्त्र को मैं प्रणाम करता हूँ।।३३।।
सर्वज्ञाननिधानाय भवपाशविमोचिने।
महातेजस्विने सम्यग् नमस्काराय मे नमः।।३४।। सभी ज्ञानों का भण्डार, भवरूपबंधन से मुक्ति दिलानेवाला, महातेजस्वी नमस्कार मन्त्र को मेरा नमन है।।३४।।
स्वात्मनि स्वानुरागाय भवरागविनाशिने।
समत्वयोगयुक्ताय नमस्काराय मे नमः।।३५।। अपनी आत्मा पर प्रेम उपजानेवाले, भावराग (सांसरिक) को नाश करनेवाले तथा समत्वयोग से भरे हुए नमस्कार मन्त्र को मैं नमस्कार करता हूँ।।३५।।