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योगकल्पलता
सिद्धस्वरूपप्राप्त्यर्थमाज्ञासङ्केतरूपिणे।
गुरोश्चिदंशतुल्याय नमस्काराय मे नमः।।२४।। सिद्ध स्वरूप को प्राप्त करने के लिए गुरु के ज्ञान अंश (भाग) के समान आज्ञा संकेतरूप नमस्कार महामन्त्र को मेरा नमस्कार है।।२४।।
प्राणभूताय भव्यानां भावधर्मप्रदाय च।
योगदृष्ट्या सदैवास्तु नमस्काराय मे नमः।।२५।। भव्यों के प्राणभूत एवं भाव धर्म को देनेवाले नमस्कार महामन्त्र को मेरा हमेशा नमस्कार हो।।२५।।
पञ्चत्रिंशद्धि वर्णा वै तीर्थकृद्वाग्गुणोपमाः।
राजन्ते यत्र तस्मै तु नमस्काराय मे नमः।।२६।। तीर्थंकर के वाणी के समान ३५ (पैंतीस) वर्ण जिसमें शोभित होते हैं, उस नमस्कार महामन्त्र को मेरा नमस्कार हो।।२६।।
निहिता गुप्तरूपेण यस्मिन् विद्याः पदे पदे।
वणे वर्णे पुनस्तस्मै नमस्काराय मे नमः।।२७।। जिसमें प्रत्येक पद में तथा प्रत्येक वर्ण में गुप्तरूप से विद्याएँ भरी है ऐसे नमस्कार महामन्त्र को मेरी वन्दना है।।२७।।
सदैवोल्लासरूपाय स्वयमेवोत्थिताय च।
अन्तःस्थिताय सद्भक्त्या नमस्काराय मे नमः।।२८।। जो उल्लासरूप है और स्वयं ही प्रगट हुआ है तथा सदा अन्तर में रहता है, उस नमस्कार महामन्त्र को मेरा सदा नमन।।२८।।
संसारप्रतिपक्षाय महासौख्यप्रदायिने।
तीर्थरूपाय मन्त्राय नमस्काराय मे नमः।।२९।। जो संसार का शत्रु है तथा मोक्षसुख का दाता है, ऐसे तीर्थरूप नमस्कार महामन्त्र को मेरा नमन।।२९।।