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नमस्कारनुतिः
उ५
भवबीजाग्निरूपाय मोक्षबीजाय भावतः।
परमेष्ठिस्वरूपाय नमस्काराय मे नमः।।४२।। भवरूप बीज के लिये अग्नि के समान मोक्ष के बीजरूप एवं भाव से परमेष्ठीरूप नमस्कार महामन्त्र को मेरा नमस्कार है।।४२।।
गुरुवक्कैकवेद्याय ब्रह्मात्मैक्यकराय च।
मृत्युञ्जयाय मन्त्राय नमस्काराय मे नमः।।४३।। जो मात्र गुरुमुख से जानने योग्य है, ब्रह्म के साथ आत्मा को मिलानेवाला है और मृत्यु को जीतनेवाला है ऐसे मन्त्र नमस्कार महामन्त्र को मेरा नमन है।।४३।।
देशे काले त सर्वस्मिन्नामादिभिरुपास्यते।
तस्मै प्रवरमन्त्राय नमस्काराय मे नमः।।४४।। सभी समय में, सभी देशों में सभी नामों से जिसकी उपासना की जाती है उस श्रेष्ठ मन्त्र नमस्कार महामन्त्र को मेरा नमन है।।४४।।
शाश्वताय महार्थाय कैवल्यपददायिने।
मनोमयाय मन्त्राय नमस्काराय मे नमः।।४५।। महान् अर्थवाला, केवल ज्ञान को देनेवाला, शाश्वत और मनोमय नमस्कार महामन्त्र को मेरा नमन हो।।४५।।
मन्त्रतत्त्वानुसन्धानाद्वाचकाय निजात्मनः।
अभेदप्रणिधानाद्धि नमस्काराय मे नमः।।४६।। जिस मन्त्र के तत्त्व का अनुसन्धान करने से एवं जो अभेद प्रणिधान के कारण अपने ही आत्मा का वाचक होता है, उस नमस्कार महामन्त्र को मेरा नमन हो।।४६।।
साधिते मन्त्रराजे तु सिद्धा स्यान्मातृका स्वयम्।
आदराद्धि सदा तस्मान्नमस्काराय मे नमः।।४७।। महामन्त्र की साधना से स्वयं मातृका सिद्ध होती हैं, इसलिए सतत आदरपूर्वक