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नमस्कारनिरूपणम्
नमस्कारेण मन्त्रेण भावयन् सततं सुधीः ।
ब्रह्माण्डं निखिलं पिण्डे याति लोकाग्रसंस्थितिम् ।।४८ ।।
पण्डित लोग नमस्कारमन्त्र का तथा पिण्ड में ब्रह्माण्ड का निरंतर ध्यान करते हुए मोक्ष को जाते है ।। ४८ ।।
नमस्कारेण मन्त्रेण ‘सोऽहं' भावेन सन्ततम्।
यो ध्यायति परं ब्रह्म सत्वरं स हि सिद्ध्यति ।। ४९ ।।
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नमस्कारमन्त्र से परब्रह्म का एकाकार भाव (जो वह है मै वही हूँ अर्थात् आत्मा-परमात्मा में अभेद) से जो ध्यान करता है वह शीघ्र ही सिद्ध होता है ।। ४९ ।।
गुरोर्भद्रङ्कराख्यस्य पन्यासपदधारिणः ।
प्रसादाद्रचितं ह्येतन्नमस्कारनिरूपणम्।।५०।।
पंन्यास गुरुवर श्री भद्रकरविजय की कृपा से इस नमस्कार निरूपण की रचना की गई ।। ५० ।।