________________
२६
नमस्कारेण मन्त्रेण सद्गुरोः कृपया क्षणात्। ब्रह्मात्मैक्यानुसन्धानं जायते मोक्षकाङ्क्षिणाम् ।।४२।। मुमुक्षुओं को सद्गुरु की कृपा से नमस्कारमन्त्र के प्रभाव से क्षणभर में ब्रह्म और आत्मा एक है ऐसा आभास होता है । । ४२॥
नमस्कारेण मन्त्रेण शान्तचित्तो हि साधकः । विस्मृत्य स्वशरीरं वै जायते ब्रह्मतत्परः।।४३।।
नमस्कारमन्त्र से साधक का चित्त शान्त हो जाता है, जिससे वह अपने शरीर को भूलकर ब्रह्म में लीन हो जाता है ।। ४३ ।।
नमस्कारेण मन्त्रेण हित्वा पौगलिकं सुखम्। ध्याता ब्रह्मानुसन्धानात्स्वयमेव सुखायते।।४४।।
योगकल्पलता
नमस्कारमन्त्र के प्रभाव से ध्यानी शारीरिक सुख को छोडकर ब्रह्म के ध्यान में लीन होकर अलौकिक सुखमय बन जाता है ।। ४४ ।।
नमस्कारेण मन्त्रेण गम्भीरं ब्रह्म वेत्ति यः।
समाधिर्जायते तस्य निर्विकल्पो न संशयः ।। ४५ ।।
नमस्कारमन्त्र के स्मरण से जो ब्रह्मतत्त्व को जानता है निश्चित ही उसकी निर्विकल्प समाधि होती है ।। ४५ ।।
नमस्कारेण मन्त्रेण भावनाज्ञानवृद्धितः ।
सद्ध्यानदीपनं चैव ब्रह्मभावो भवेद् ध्रुवम् ॥४६॥
नमस्कारमन्त्र के सेवन से भावना, ज्ञान की वृद्धि होती है, सद्ध्यान का उदय होता है तथा निश्चित ही उसमें ब्रह्मभावना आती है ।। ४६ ।।
नमस्कारेण मन्त्रेण ध्याता ध्यानमुपागतः ।
ध्यानवीर्यप्रभावाद्धि ध्येयरूपः प्रजायते।।४७।।
नमस्कारमन्त्र का ध्यान करने पर ध्यानी की ध्यानशक्ति बढती है जिससे ध्याता ध्येयरूप हो जाता है ।। ४७ ।।