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आशाप्रेमस्तुतिः
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त्वयि दृष्टे भवत्येव प्रसन्नं मे मनस्सदा।
तेनाशे! प्रेमसम्बन्ध आवयोस्तु पुरातनः।।१४।। हे आशे! तुम्हारा ध्यान करने से निश्चित ही मेरा मन प्रसन्न होता है, इससे ऐसा लगता है कि हम दोनों का प्रेम सम्बन्ध पुराना है। ।।९४।।
शिवशक्त्यात्मकं विश्वमाशे! तन्त्रे निरूपितम्।
एतज्ज्ञानं यदा पक्वं तदा मुक्तिर्भवेद् ध्रुवम्।।९५।। हे आशे! तंत्रशास्त्र में संसार को शिव-शक्ति का संयुक्त रूप कहा गया है तथा इस बात का ज्ञान दृढ होने पर मुक्ति निश्चित है। ।।९५।।
अद्वैतं शिवशक्त्योर्हि योगमाहुर्विचक्षणाः।
आशे! तेन परानन्दस्सम्यगेवानुभूयते।।९६॥ हे आशे! शिव और शक्ति के अद्वैतभाव (दोनों मिलकर एक) को विद्वानों ने योग कहा है जिससे (योग से) निश्चित ही परमानन्द की अनुभूति होती है। ।।९६।।
आशे! तवैव रूपं ये जानन्ति परमामृतम्।
ते प्राप्नुवन्ति मोक्षं वै शक्तितत्त्वविशारदाः।।९७।। हे आशे! शक्ति तत्त्व को जाननेवाले जो तुम्हारे ही अमृतमय रूप को जानते हैं, वे अवश्य ही मोक्ष प्राप्त करते हैं। ।।९७।।
आशे! गुरोर्मुखाज्ज्ञातं स्त्रीरूपं खलु तात्त्विकम्।
शुद्धशक्तिस्वरूपं ते भुक्तिमुक्तिप्रसाधकम्।।१८।। आशे! गुरुजी के मुख से मुझे तुम्हारे तात्त्विक स्त्रीरूप का ज्ञान हुआ, तुम भुक्ति और मुक्ति देनेवाली शुद्धशक्ति स्वरूपा हो। ।।९८।।
स्त्रीसाध्यं निखिलं लोके सैव मुक्तिस्वरूपिणी।
स्त्रीतत्त्वज्ञाः परं सौख्यं तस्मादाशे! प्रयान्ति वै।।९९।। आशे! इस लोक में स्त्री सभी को वश में करती है, वही मुक्तिस्वरूपा है इसलिये स्त्रीतत्त्व को जाननेवाले परं सुख मोक्ष के लिये प्रयत्न (स्त्रीरूप की उपासना) करते हैं। ।।९९।।
आशा