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रूप बनायी है । अवचूरिकार के वचन से ही यह ज्ञात होता है कि आ. श्रीजिनप्रभसूरि ने ७०० स्तोत्र श्रीसोमतलिकसूरि म. को भेट किये थे ।
साधारणतः आगमो का क्रम ११ अंग, १२ उपांग, १० प्रकीर्णक, ६ छेदसूत्र, ४ मूलसूत्र, नन्दी, अनुयोगद्वार गिना जाता है। यहाँ पर इस क्रम से स्तुति की गयी है - ४ मूलसूत्र, नन्दी अनुयोगद्वार, ऋषिभाषित, ११ अंग, १२ उपांग, १० प्रकीर्णक, छेदसूत्र, दृष्टिवाद, अंगविद्या । ऋषिभाषित और अंगविद्या-जो कि प्रकीर्णक सूत्र में गिने जाते है-यहाँ पर उनको स्वतन्त्र स्थान प्राप्त है । चूर्णिकारने विशेषतः सूत्रो की चमत्कारिता का उल्लेख किया है । जैसे कि आचारांग के महापरिज्ञा अध्ययन में आकाशगामिनी विद्या थी । जिसका सहारा लेकर श्रीवज्रस्वामी ने बौद्धों को जिता था । अंगविद्या में ऐसे पन्द्रह आदेश है जो स्वप्न में भविष्य का कथन करते है। आगम के अलावा कुछ एक महत्त्वपूर्ण सूत्र का भी स्तवन इसमें है ।
अवचूरिकार ने इसके अलावा पाक्षिकसूत्र की भी अवचूरि लिखी है। जिसका अतिदेश श्लोक ३३ में है।
आदिगुप्त नाम के गुरु शायद उनके विद्यागुरु रहे होंगे । अन्तिम प्रशस्ति पद्य में उनकी कृपा से यह वृत्ति की रचना हुई यह बताया है ।
___ मूलकार ने इस स्तव में अनुष्टुप, आर्या उपजाति आदि छन्द का प्रयोग किया है।
सर्वसिद्धांतस्तव श्वेताम्बर परम्परा सम्मत ४५ आगमों की महिमा बताती है। परमात्माकी और गुरुकी स्तुति करने वाले स्तोत्र पर्याप्त संख्या में उपलब्ध है। सिद्धान्त की स्तुति करने वाले स्तोत्र में यह स्तोत्र अपनी सरलता एवं प्रासादिकता के कारण विशिष्ट स्थान प्राप्त है ।
आ. श्रीजिनप्रभसूरि का छन्द विषयक बोध अप्रतिम था । आपने अजितशान्तिस्मरण में बहोत अप्रचलित छन्दो का प्रयोग किया है। इनमें से कई छन्द का विवरण आ.श्रीहेमचन्द्रसूरिकृत 'छन्दोऽनुशासनम्' में नहीं मीलता । आ.श्रीजिनप्रभसूरि ने प्राचीन कविदर्पण नाम के प्राकृतभाषा बद्ध