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________________ ही आहार ग्रहण करने का नियम था। वे मान्त्रिक भी थे, डीसा के पास जघराल गाँव में उनका आचार्य श्रीसोमतिलकसूरिजी के साथ मिलन हुआ था । वहाँ एक चूहे ने आ. श्रीसोमतिलकसूरिजी की झोली (आहार पात्र को ग्रहण करने वस्त्र से बनी हुई) काट दी। आ. श्रीजिनप्रभसूरि ने मन्त्र के प्रभाव से सभी चूहों को बुलाया। जिस चूहे ने झोली काटी थी उसे उपदेश देकर विदा किया । उनको पद्मावती देवी प्रत्यक्ष थी। पद्मावती देवी के वचन से'आगे जाकर तपागच्छ का उदय होनेवाला है,' यह जानकर उन्होंने अपने बनाए हुए ७०० स्तोत्र श्रीसोमतिलकसूरिजी को अर्पण किये थे। आ. श्रीसोमतिलकसूरिजी : आ. श्रीसोमतिलकसूरिजी, आ. श्रीसोमप्रभसूरिजी के पट्टधर थे (कर्पूरस्तव के कर्ता) । उनका जन्म वि.सं. १३५५ माघ मास में, दीक्षा सं. १३६९, सं. १३७२ में सूरिपद (मतलब १४ साल की उम्र में दीक्षा और १८ साल की उम्र में सूरिपद) वि.सं. १४२४ में स्वर्गवास हुआ। उनकी कृतियाँ१. बृहन्नव्यक्षेत्रसमाप्तः २. सप्ततिशतस्थानप्रकरणम् ३. 'यत्राखिल' सञ्जाक ४. 'जयवृषभ' चतुर्विंशति____ चतुर्विंशतिजिनस्तुतिवृत्तिः जिनस्तवनवृत्तिः ५. 'स्रस्ताशर्म' स्तुतिः ६. 'श्रीतीर्थराज' स्तुति ७. शुभभावानत० (चतुरर्थभाक्) एतद्वृत्तिश्च ८. 'श्रीमद्वीरं स्तुवे०' ९. शिवशिरसि० (कमलबन्धस्तवनम्) १०. 'श्रीनाभिसम्भव०' 'श्रीशैवेय०' ११. 'श्रीसिद्धार्थ०'- १२. चतुर्विंशतिजिनस्तवनम्. वीरस्तवनम् (श्लो. १२) अवचूरिः __ आ. श्रीविशालराजसूरि के शिष्य पं. श्रीसोमोदयगणि ने इस स्तव के उपर अवचूर्णि की रचना की है। यह स्तोत्र के अर्थ को समझने के लिए सहायक है । अवचूर्णिकार ने स्वयं लिखा है कि मैंने यह विवृति पदच्छेद
SR No.009264
Book TitleSarva Siddhanta Stava
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinprabhasuri, Somodaygani
PublisherShrutbhuvan Sansodhan Kendra
Publication Year2015
Total Pages69
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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