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________________ पुरोवचनः सर्वसिद्धान्तस्तव श्वेताम्बर परम्परा में प्रचलित पैतालीस आगमों की स्तुति है । इस स्तव में आगमों के नाम एवं उनका सामान्य परिचय प्रस्तुत किया गया है। आ. श्रीजिनप्रभसूरिजी : 'सर्वसिद्धान्तस्तवः' मूलतः आ. श्रीजिनप्रभसूरिजी की कृति है । आ. श्रीजिनप्रभसूरिजी खरतरगच्छ के महान प्रभावक एवं विद्वान आचार्य थे। वह आ. श्रीजिनसिंहसूरि के प्रधानशिष्य थे । वि.सं. १३३१ में उन्होंने लघुखरतर शाखा का स्थापन किया था। उनकी कुल सत्रह कृतियाँ उपलब्ध १. परमसुखद्वात्रिंशिका २. प्रव्रज्याविधानवृत्तिः ३. प्रत्याख्यानस्थानविवरणम् ४. साधुप्रतिक्रमणवृत्तिः (सं. १३६५) ५. सन्देहविषौषधिवृत्ति ६. श्रेणिकचरितम् (व्याश्रयं) ___(सं. १३६४) ___ (सं. १३५६) ७. विषमकाव्यवृत्तिः ८. तपोमतकुट्टनकम् ९. धर्माधर्मकुलकम् १०. पूजाविधिः ११. विधिप्रपा (सं. १३६३) १२. सप्तस्मरणटीका १३. वन्दनस्थानविवरणम् १४. विविधतीर्थकल्पः (सं. १३२७) १५. दीपालिकाकल्पः १६. सूरिमन्त्रप्रदेशविवरणम् १७. अजितशान्ति-भयहर-उपसर्गहरस्तोत्रवृत्तिः (सं. १३६५) उन्होंने बहुत सारे स्तोत्र की रचना की है। सर्वसिद्धान्तस्तव की अवचूरि के अनुसार आचार्यश्री को रोज नये स्तव का निर्माण करने के बाद
SR No.009264
Book TitleSarva Siddhanta Stava
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinprabhasuri, Somodaygani
PublisherShrutbhuvan Sansodhan Kendra
Publication Year2015
Total Pages69
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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