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________________ 36 लेना पडता है पर जन्म सबका एक सा नहीं होता । पूर्वभव का स्थूल शरीर छोडने के बाद अन्तराल गति से केवल तेजस-कार्मण शरीर के साथ आकर नवीन भव के योग्य स्थूल शरीर के लिए पहले पहले योग्य पुद्गलों को ग्रहण करना जन्म है। जन्म के तीन प्रकार हैं- संमूर्छन, गर्भ और उपपात । माता - पिता के सम्बन्ध के बिना ही उत्पत्तिस्थान में स्थित औदारिक पुद्गलों को पहले पहले शरीर रूप परिणत करना संमूर्च्छन जन्म है। उत्पत्ति स्थान में स्थित शुक्र और शोणित के पुद्गलों को पहले पहले शरीर के लिए ग्रहण करना गर्भ जन्म है। उत्पत्ति स्थान में स्थित वैक्रिय पुद्गलों को पहले पहले शरीर रूप में परिणत करना उपपात जन्म है। योनि के प्रकार- जन्म के लिए स्थान आवश्यक है । जिस स्थान में पहले पहले स्थूल शरीर के लिए ग्रहण किये गए पुद्गल कार्मण शरीर के साथ गरम लोहे में पानी की तरह मिल जाते हैं उसी को योनि कहते हैं। योनि नौ प्रकार की है। सचित्त, शीत, संवृत, अचित्त, उष्ण, विवृत, सचित्ताचित्त, शीतोष्ण और संवृत-विवृत। सचित्त- जो जीव प्रदेशों से अधिष्ठित हो । अचित्त- जो जीव प्रदेशों से अधिष्ठित न हो। मिश्र-जो कुछ भाग में जीव प्रदेशों से अधिष्ठित हो कुछ भाग में न हो। शीत- जिस उत्पत्ति स्थान में शीत स्पर्श हो। उष्ण- जिसमें उष्ण स्पर्श हो । मिश्र- जिसके कुछ भाग में शीत तथा कुछ भाग में उष्ण स्पर्श हो । संवृत- जो उत्पत्ति स्थान ढका या दबा हो । विवृत- जो ढका न हो खुला हो । मिश्र- जो ढका तथा कुछ खुला हो । किस स्थान में कौन कौन से जीव उत्पन्न होते हैं सो बताते हैं नारक और देव, गर्भज मनुष्य और तिर्यंच की अचित्त और मिश्र योनि ( = सचित्ताचित्त) होती है, शेष सब जीव अर्थात् पांच स्थावर, तीन विकलेन्द्रिय और अगर्भज पंचेन्द्रिय तिर्यंच तथा मनुष्य की त्रिविध = सचित्त, अचित्त तथा मिश्र ( सचित्ताचित्त) योनि होती है। गर्भज मनुष्य और तिर्यंच तथा देव की मिश्र (शीतोष्ण ) योनि होती है। तेजः कायिक (अग्नि) उष्ण, शेष सब अर्थात्- चार स्थावर, तीन विकलेन्द्रिय अगर्भज पंचेन्द्रिय तिर्यंच और मनुष्य तथा नारक की त्रिविध योनि- शीत, उष्ण और मिश्र (शीतोष्ण ) योनि होती है। नारक, देव और एकेन्द्रिय की संवृत योनि होती है। गर्भज पंचेन्द्रिय तिर्यंच और मनुष्य की मिश्र (संवृत विवृत) योनि होती है। शेष सब की अर्थात् तीन विकलेन्द्रिय, अगर्भज पंचेन्द्रिय मनुष्य और तिर्यंच की विवृत योनि होती है। प्रश्न- योनि और जन्म में क्या अन्तर है? उत्तर- योनि आधार है और जन्म आधेय । अर्थात् स्थूल शरीर के लिए योग्य पुद्गलों का प्राथमिक ग्रहण जन्म है। और ग्रहण जिस जगह हो वह योनि है। योनियाँ - पृथ्वीकाय ७ लाख, अप्काय ७ लाख, तेजस्काय ७ लाख, वायुकाय ७ लाख, प्रत्येक वनस्पति काय १० लाख, साधारण वनस्पति काय १४ लाख, प्रत्येक विकलेन्द्रियों की दो-दो लाख, देवता, नरक, तिर्यंच पंचेन्द्रिय की चार चार लाख, १४ लाख मनुष्य । इस प्रकार कुल योनियाँ ८४ लाख है। १ संदर्भ गाथा - ४२ / ४३/४४, २ संदर्भ गाथा - ४७ / ४८
SR No.009261
Book TitleMan Sthirikaran Prakaranam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVairagyarativijay, Rupendrakumar Pagariya
PublisherShrutbhuvan Sansodhan Kendra
Publication Year2015
Total Pages207
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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