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________________ 30 और तिर्यंच को होता है। २) वैक्रिय शरीर- जिस शरीर से विविध अथवा विशिष्ट प्रकार की क्रियाएँ होती हैं। वह वैक्रिय शरीर कहलाता है। जैसे एक रूप होकर अनेक रूप धारण करना, अनेक रूप होकर एक रूप धारण करना, छोटे शरीर से बडा शरीर बनाना और बड़े से छोटा बनाना, पृथ्वी और आकाश पर चलने योग्य शरीर धारण करना, दृश्य, अदृश्य रूप बनाना आदि। वैक्रिय शरीर दो प्रकार का है- औपपातिक वैक्रिय शरीर और दूसरा लब्धिप्रत्यय वैक्रिय शरीर। जन्म से ही जो वैक्रिय शरीर मिलता है वह औपपातिक वैक्रिय शरीर है। देवता और नारकी के शरीर जन्म से ही वैक्रिय शरीरधारी होते हैं। तप आदि द्वारा प्राप्त लब्धि विशेष से प्राप्त होनेवाला वैक्रिय शरीर लब्धिप्रत्यय वैक्रिय शरीर है। मनुष्य और तिर्यंच में लब्धिप्रत्यय वैक्रिय शरीर होता है। ३) आहारक शरीर- प्राणिदया, तीर्थंकर भगवान की ऋद्धि का दर्शन तथा संशय निवारण आदि प्रयोजनों से चौदह पूर्वधारी मुनिराज, अन्य क्षेत्र- महाविदेह क्षेत्र में विराजमान तीर्थंकर भगवान के समीप भेजने के लिए, लब्धि विशेष से अतिविशुद्ध स्फटिक के सदृश एक हाथ का जो शरीर निकालते है वह आहारक शरीर कहलाता है। उक्त प्रयोजनों के सिद्ध हो जाने पर वे मुनिराज उस शरीर को छोड़ देते हैं। ४) तेजस शरीर-तेज पुद्गलों से बना हुआ शरीर तेजस् कहलाता है। प्राणियों के शरीर में विद्यमान उष्णता से इस शरीर का अस्तित्व सिद्ध होता है। यह शरीर आहार का पाचन करता है। तपोविशेष से प्राप्त तेजस लब्धि का कारण भी यही शरीर है। ५) कार्मण शरीर- कर्मों से बना हुआ शरीर कार्मण कहलाता है अथवा जीव के प्रदेशों के साथ लगे हुए आठ प्रकार के कर्मपुद्गलों को कार्मण शरीर कहते हैं। यह शरीर ही सब शरीरों का बीज है। इन पाँचों शरीर आगे आगे के पिछले की अपेक्षा प्रदेश बहुल अधिक प्रदेश वाले हैं एवं परिमाण मे सूक्ष्मतर हैं। तैजस और कार्मण शरीर सभी संसारी जीवों के होते हैं। इन दोनों शरीरों के साथ ही जीव मरण देश को छोडकर उत्पत्ति स्थान को जाता है। ___ इन पाँचों शरीरों का कारण, प्रदेश, स्वामि, विषय, प्रयोजन, प्रमाण, स्थिति, अल्पबहुत्व एवं अन्तर अल्पबहुत्व का विचार किया जाता है कारण- सब से सूक्ष्म पुद्गल कार्मण शरीर के है, उसकी अपेक्षा तेजस शरीर के पुद्गल बादर है, उसकी अपेक्षा आहारक शरीर के पदल बादर है. उसकी अपेक्षा वैक्रिय शरीर के पदल बादर है. उस औदारिक शरीर के पुल बादर है। सब से बादर पुद्गल औदारिक शरीर के, उसके अपेक्षा वैक्रिय शरीर के सूक्ष्म, उसकी अपेक्षा आहारक शरीर के सूक्ष्म, उसकी अपेक्षा तेजस के सूक्ष्म और उसकी अपेक्षा कार्मण शरीर के सूक्ष्म है। प्रदेश- प्रदेश की अपेक्षा से आहारक शरीर सब से थोडे है, उससे वैक्रिय शरीर प्रदेश की अपेक्षा असंख्यात गुणा, उससे औदारिक शरीर प्रदेश की अपेक्षा असंख्यात गुणा, उससे तैजस शरीर प्रदेश की अपेक्षा अनन्त गुणा, उससे कार्मण शरीर प्रदेश की अपेक्षा अनन्त गुणा होता है। १ संदर्भ-गाथा - २५
SR No.009261
Book TitleMan Sthirikaran Prakaranam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVairagyarativijay, Rupendrakumar Pagariya
PublisherShrutbhuvan Sansodhan Kendra
Publication Year2015
Total Pages207
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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