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________________ छाणी, रीपोर्ट, १८७२-७३, नं. १६०, वे.नं. १७४४), उसके उपरान्त गुजरात के राजा शंख की सभा में (टीका में उसकी प्रशस्ति-शंखस्य नरेश्वरस्य पुरतोऽप्यूचे) कथित (९) महाबलमलयासुन्दरी चरित्र सर्ग : ४ (कां. छाणी, पी १. नं. ३१३) उपलब्ध है। मो.द. देसाई के 'जैन साहित्यनो संक्षिप्त इतिहास' के अनुसार आ. माणिक्यशेखरसूरिजी आ. माणिक्यसुन्दरसूरिजी से भिन्न है । आंचलगच्छ के आ. श्रीजयशेखरसूरि, के शिष्य आ. श्रीमेरुतुंगसूरि हुए। उनके दो शिष्य थे (१) आ. माणिक्यसुन्दरसूरि (जिनकी रचनाओं का उल्लेख 'जैन परम्परानो इतिहास' में है) (२) आ. माणिक्यशेखरसूरि । उनकी आठ रचनाएँ हैं । (१) कल्पनियुक्ति अवचूरि (बुह. ७, नं. १९), (२) आवस्सयसुत्तणिज्जुत्ती-टीकादीपिका (बु. ८, नं. ३७३), (३) श्रीओघनियुक्तिदीपिका, (४) पिण्डनियुक्तिदीपिका (बुह्.) ८ नं. ३८९), (५) दसवेयालियणिज्जुत्तीदीपिका, (६) उत्तरज्झयणदीपिका, (७) आचारांगसुत्तदीपिका, (८) नवतत्त्व विवरण आदि है। गुजराती गद्य में उनकी रचना "पृथ्वीचन्द्र चरित्र" के बारे में जानकारी मिलती है। उपर्युक्त प्रत्येक 'माणिक्यांक' है। उनकी उपलब्ध रचना आवश्यकनियुक्तिदीपिका के अनुसार इनके गुरु का नाम आ. श्री मेरुतुंगसूरि है, ऐसा ज्ञात होता है । आचारांग दीपिका और नवतत्वविवरण से समझ में आता है, कि ये सभी एक ही कर्ता के रचे हुए सहोदर रूप हैं कर्त्ततया ग्रन्था अमी अस्याः सहोदराः)। इससे अधिक उनके समय आदि के बारे में अन्य कोई जानकारी उपलब्ध नहीं है । आ.श्रीमाणिक्यशेखरसूरिजी अंचलगच्छीय आ.श्रीमहेन्द्रप्रभसूरिजी के शिष्य आ.श्रीमेरुतुंगसूरिजी के शिष्य हैं, आवश्यकनियुक्ति-दीपिका के उपरान्त उनकी अन्य कृतियाँ भी हैं : १. दशवैकालिकनियुक्ति-दीपिका, २. पिण्डनियुक्तिदीपिका, ३. ओघनियुक्तिदीपिका, ४. उत्तराध्ययनदीपिका, ५. आचार-दीपिका की प्रशस्ति इस प्रकार है : ते श्रीअञ्चलगच्छमण्डनमणिश्रीमन्महेन्द्रप्रभश्रीसूरीश्वरपट्टपङ्कजलसमुल्लासोल्लसद्भानवः । तर्कव्याकरणादिशास्त्रघटनाब्रह्मायमाणाश्चिरं, श्रीपूज्यप्रभुमेरुतुङ्गगुरवो जीयासुरानन्ददाः ॥१॥ तच्छिष्य एष खलु सूरिरचीकरत् श्रीमाणिक्यशेखर इति प्रथिताभिधानः । चञ्चद्विचारचयचेतनचारुमेनां, सद्दीपिकां सुविहितव्रतिनां हिताय ॥२॥ १. जैन परम्परानो इतिहास भाग. २, पृष्ठ ४१७, इ.स. २००१ का प्रकाशन । २. मो.द.देसाई का जैन साहित्य नो संक्षिप्त इतिहास ।
SR No.009260
Book TitleKalpniryukti
Original Sutra AuthorBhadrabahusuri
AuthorManikyashekharsuri, Vairagyarativijay
PublisherShrutbhuvan Sansodhan Kendra
Publication Year2014
Total Pages137
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_kalpsutra
File Size3 MB
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