SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 8
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १. प्राचीन चूर्णि में पर्युषण शब्द के नौ गौण-गुणनिष्पन्न नाम बताये हैं । आ. माणिक्यशेखरसूरि. कृत अवचूणि में इनकी संख्या दस है, प्राचीन चूणि में पर्यायव्यवस्थापना और पर्युसमणा को एक ही गिना है । २. गाथा ९ : 'साहग' और 'असाहग' शब्द भेद है, अर्थ एक ही है, वैसे 'अ' होना चाहिए । ३. गाथा २४ : प्राचीन चूणि में 'यहाँ से क्षेत्राधिकार प्रारम्भ होता है ।' और 'विदिशा को क्यों ग्रहण नहीं किया ?' इस प्रश्न का समाधान; ये दो बातें स्पष्ट की हैं । ___४. गाथा २७ : प्राचीन चूर्णि में 'दगघट्ट' इस ‘पारिभाषिक' शब्द का अर्थ स्पष्ट किया है। ५. गाथा २९ : आहार व्युत्सर्जन की स्पष्टता प्राचीन चूर्णि में है। ६. गाथा ३० । 'विगति' का अर्थ प्राचीन चूर्णि में स्पष्ट किया है, 'संयम से असंयम में जाना ।' चातुर्मास विगइ त्याग करने का कारण स्पष्ट किया है, 'बिजली और बादलों की आवाज सुनकर मोह में विवृद्धि होती है ।' ७. गाथा ३५ : प्राचीन चूर्णि में वर्षाकाल में दीक्षा न देने के कारण बताये हैं । ८. गाथा ३८ : समिति पालन की उपयोगिता प्राचीन चूर्णि में है, पाँच समिति के उदाहरण प्रस्तुत हैं। चूर्णि एवं अवचूर्णि के कर्ता __कल्पनियुक्ति की प्राचीन चूर्णि के कर्ता अज्ञात है । निशीथ शेष चूर्णि के कर्ता श्री जिनदासगणि महत्तर से वे भिन्न होने चाहिये । क्योंकि दोनों की शैली में पर्याप्त अन्तर दिखाई देता है । इतना तो स्पष्ट है कल्पनियुक्ति के चूर्णिकार नियुक्ति रचना के बाद तुरन्त में हुए है । 'पवित्र कल्पसूत्र' में आगम प्रभाकर पू.मु.श्री पुण्यविजयजी म. ने भी इनको अज्ञात ही माना है। अवचूर्णि के कर्ता-श्री माणिक्यशेखरसूरिजी., आ. माणिक्यसुन्दरसूरिजी इस नाम से भी प्रसिद्ध हैं । इनका काल एवं इतिवृत्त अद्यावधि कालगर्भ है । आ. माणिक्यसुन्दरसूरिजी, आ. जयशेखरसूरिजी के पास पढ़े थे । इनकी नौ रचनाएँ उपलब्ध हैं । (१) सं. १४६३ में 'श्रीधरचरित्र सं. (कां. छाणी), (२) चतुःपर्वीकथा चम्पू, (३) शुकराज कथा (भां, १ नं. ८३, प्र. हंसविजय जैन फ्री ग्रन्थमाला नं. २०), (४) अजापुत्र कथा, (५) संविभागवत कथा, (६) पृथ्वीचन्द्र कथा, (७) सं. १४७८ में 'गुणवर्मा चरित्र' और (८) सं. १४८४ में (कां. छाणी, बुह. ४, नं. २४१, खेडा भं.), 'साचोर, चन्द्रधवल, धर्मदत्त कथा (बुह. ३, नं. १६०. कां.
SR No.009260
Book TitleKalpniryukti
Original Sutra AuthorBhadrabahusuri
AuthorManikyashekharsuri, Vairagyarativijay
PublisherShrutbhuvan Sansodhan Kendra
Publication Year2014
Total Pages137
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_kalpsutra
File Size3 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy